मनोरंजक कथाएँ >> आदिवासियों की रोचक कहानियाँ आदिवासियों की रोचक कहानियाँश्रीचन्द्र जैन
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इसमें आदिवासियों की रोचक कहानियों का उल्लेख किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
करामाती मुर्गा
एक गोंड़ के पास एक करामाती मुर्गा था। वह उसके घर की रखवाली करता था। रात
में जब गोंड़ सो जाता था तब मुर्गा उसकी झोपड़ी के ऊपर जाकर बैठता और
इधर-उधर देखता रहता।
एक दिन की बात है। गर्मी के दिन थे। गोंड की झोपड़ी में आग लगी और वह जलकर राख हो गई। बेचारा गोंड़ रोने लगा। तब उसके पास कुछ नहीं बचा था। उसने मुर्गे को मारकर खाना चाहा। मुर्गा गोंडद्य की नियत को जान गया। वह बोला, ‘‘मेरे मालिक ! तुम मुझे न मारो। मैं तुम्हारे लिए अन्न और कपड़े का प्रबंध करता हूँ। मेरे पास एक पैसा है। उसी से सब सामान मोल लाता हूँ।’’
गोंड़ ने कहा, ‘‘तू पागल हो गया है। एक पैसे कितना अन्न और कपड़ा आ सकता है। खैर, देखता हूँ कि क्या-क्या सामान लाता है।’’
मुर्गा बनिए के पास गया और बोला, ‘‘सेठ जी, मेरे मालिक ने एक पैसे के गेहूँ मँगाए हैं। जल्दी दे दीजिए।’’ बनिया गद्दी पर सो रहा था। उसने कहा, ‘‘कोठे में जाकर बोरे से पावधर गेहूँ निकाल ले। पैसा मुझे दे।’’ मुर्गा कोठे में जाकर बोरे में से पावभर गेहूँ निकाल ले। पैसा मुझे दे।’’ मुर्गा कोठे के भीतर गया और एक बोरा गेहूँ अपने कान में भर लिये। वह बाहर आकर बोला, ‘‘सेठजी, गेहूँ पतले हैं, मैं नहीं लेना चाहता। मेरा पैसा वापस दे दो।’’
बनिये ने पैसा फेंक दिया। मुर्गा चोच से पैसा दबाकर भागा। मालिक के सामने उसने गेहूँ का ढेर लगा दिया। कानकर से गेहूँ गिरते देखकर गोंड़ चकरा गया। इसके बाद मुर्गा दूसरे बनिये के पास गया और बोला, ‘‘मेरे मालिक ने एक पैसे का कपड़ा मँगाया है। जल्दी दे दीजिये।
बनिया भोजन कर रहा था। उसने पैसे ले लिया और मुर्गें से कहा, ‘‘कोठे के भीतर जा, एक गज कपड़ा फाड़ ले।’’ मुर्गा कोठे के भीतर गया और लट्ठे के दस थान को अपने दोनों कानों में भर लिया।
एक दिन की बात है। गर्मी के दिन थे। गोंड की झोपड़ी में आग लगी और वह जलकर राख हो गई। बेचारा गोंड़ रोने लगा। तब उसके पास कुछ नहीं बचा था। उसने मुर्गे को मारकर खाना चाहा। मुर्गा गोंडद्य की नियत को जान गया। वह बोला, ‘‘मेरे मालिक ! तुम मुझे न मारो। मैं तुम्हारे लिए अन्न और कपड़े का प्रबंध करता हूँ। मेरे पास एक पैसा है। उसी से सब सामान मोल लाता हूँ।’’
गोंड़ ने कहा, ‘‘तू पागल हो गया है। एक पैसे कितना अन्न और कपड़ा आ सकता है। खैर, देखता हूँ कि क्या-क्या सामान लाता है।’’
मुर्गा बनिए के पास गया और बोला, ‘‘सेठ जी, मेरे मालिक ने एक पैसे के गेहूँ मँगाए हैं। जल्दी दे दीजिए।’’ बनिया गद्दी पर सो रहा था। उसने कहा, ‘‘कोठे में जाकर बोरे से पावधर गेहूँ निकाल ले। पैसा मुझे दे।’’ मुर्गा कोठे में जाकर बोरे में से पावभर गेहूँ निकाल ले। पैसा मुझे दे।’’ मुर्गा कोठे के भीतर गया और एक बोरा गेहूँ अपने कान में भर लिये। वह बाहर आकर बोला, ‘‘सेठजी, गेहूँ पतले हैं, मैं नहीं लेना चाहता। मेरा पैसा वापस दे दो।’’
बनिये ने पैसा फेंक दिया। मुर्गा चोच से पैसा दबाकर भागा। मालिक के सामने उसने गेहूँ का ढेर लगा दिया। कानकर से गेहूँ गिरते देखकर गोंड़ चकरा गया। इसके बाद मुर्गा दूसरे बनिये के पास गया और बोला, ‘‘मेरे मालिक ने एक पैसे का कपड़ा मँगाया है। जल्दी दे दीजिये।
बनिया भोजन कर रहा था। उसने पैसे ले लिया और मुर्गें से कहा, ‘‘कोठे के भीतर जा, एक गज कपड़ा फाड़ ले।’’ मुर्गा कोठे के भीतर गया और लट्ठे के दस थान को अपने दोनों कानों में भर लिया।
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